बाँवरी फिरी बौराई
आली री बाँवरी फिरै बौराई
रीति प्रीति की कछु नाँहिं जानी काहे नेह लगाई
जोगन होय रही पिय की बिरहन होवत कबहुँ सुनाई
पिय पिय टेर रही क्षण क्षण हिय प्रेम की पीर समाई
आली पीर बिरह की नीकी खँजर सौं हिय चुभाई
स्वाद दर्द कौ पावै बिरलो बाँवरी कौन बनै सौदाई
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