अश्कों को दबाकर

अश्कों को अपने यूँ आज दबाके बैठे हैं
तेरी महफ़िल में हम खुद को लुटाके बैठे हैं

काश हम कर सकते कभी थोड़ा भी इश्क़ तुमसे
झूठी सी अपने से उम्मीद लगाके बैठे हैं
अश्कों को .... 

इस अश्क़ की आग में चलो आज जला दो मुझको
सब अरमानों की इक चिता सजाके बैठे हैं
अश्कों को..... 

सच तो यह है कि दिलजले से हो चुके हैं अब
दिल जलाने का वह स्वाद चखाके बैठे हैं
अश्कों को ......

हाय मुझमे मेरा वजूद क्यों अब तलक बाक़ी है
खत्म करके को यह सिलसिले बुलाके बैठे हैं
अश्कों को अपने यूँ आज दबाके बैठे हैं
तेरी महफ़िल में हम खुद को लुटाके बैठे हैं

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