बिरथा स्वासा
हरिहौं बिरथा स्वासा दीन्हीं
घूमत फिरत बाँवरी इत उत अपनी न कर लीन्हीं
तुम्हरी बस्तु होऊँ नाथा झूठो साँचो तुम जानो
कौन द्वारे जाऊँ हरिहौं अबहुँ कौन कौ अपनो मानू
दुरि राखो मोय देय दुत्कारो नाथा अबहुँ न तज जाऊँ
बिरथा कीन्हीं बाँवरी जिव्हा जो नाम गौर हरि न गाऊँ
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