प्रीति की रीति

बाँवरी प्रीति की रीति अलबेलौ
ज्यों ज्यों बाढ़त आगै पन्थ जेई छूटो सँग सहेलौ
बिरह ताप खावै हिय निशदिन न भावै जग मेलौ
प्रियतम बिन लगै स्वासा खारी जग जंजाल झमेलौ
प्रीति छुड़ावै बन्धन सगरौ भोग विषय कौ खेलौ
बाँवरी कबहुँ चलै प्रीति डगरिया छुटै पैसो धेलौ

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