नवद्वीप तथा महारास
*श्रीनवद्वीप धाम तथा महारास*
श्रीनवद्वीप धाम का सृजन स्वयं श्रीराधा रानी ने अपने कर कमलों से किया , श्रीराधा रानी तथा अष्ट सखियों ने।नवद्वीप का अर्थ है नौ द्वीप,इस नवद्वीप रूपी अष्ट पंखुड़ी वाले कमल की अष्ट सखियाँ अष्टद्वीप, तथा नवम द्वीप इस कमक के भीतर भाग स्वयम श्रीयुगल।
श्रीगौरांग रूप में यहां संकीर्तन रस प्रकट है जो ब्रज में महारास। संकीर्तन में श्रीयुगल के नाम में उनका आह्लाद, उनकी केलियाँ, उनका श्रृंगार ही खिल रहा ,जो गौर हृदय का उन्माद बन प्रकट हो रहा है।पर महारास के लिए तो श्रीराधा जु के चरणों मे नूपुर और श्यामसुंदर के हाथ मे बांसुरी होनी आवश्यक है। श्रीप्रियतम के अधरों पर विराजित बांसुरी के रव रव से प्रेम झँकृत होता जिसकी ताल पर ही श्रीराधिका जु की नूपुर ताल मिलाती है।यहाँ श्रीयुगल तो गौर अवतार ले लिए, परन्तु नूपुर और वँशी के लिए श्रीगौर ने अपने अभिन्न स्वरूप श्रीनिताई चाँद का आवाहन किया।राधा रानी जु के घुँघरू करताल बने हैं तथा श्रीवेणु यहां मृदंग रूप में है।इन दोनों की ध्वनि पर थिरक थिरक श्रीगौरहरि नाम संकीर्तन रूपी रास करते हैं।
श्रीवृन्दावन में राधेश्याम नवद्वीप रास करे मेरे गौरहरि
ब्रज भूमि क्रीड़ा श्रीयुगल की नवद्वीप विलास करे गौरहरि
वेणु मृदंग नूपुर भई मजीरे महासंकीर्तन आनन्द गौरहरि
ब्रज के चन्द्र मेरे युगल पुष्प दोऊ नवद्वीप चन्द गौरहरि
डाल डाल पात पात वृन्दावन नवद्वीप श्रीयुगल बने गौरहरि
महासंकीर्तन रास युगल ब्रजविलास एकै रूप धरे गौरहरि
ग अक्षर सौं गोविंद राधा सौं र युगल रूप अवतार गौरहरि
ब्रज प्रेमावतार राधाकृष्णचंद्र नवद्वीप नाम सार गौरहरि
श्रीगुरुगौरांगो जयते !!
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