कभी यूँ भी
यह जो कसक सी उठ रही है दिल में मेरी तो नहीं
इश्क़ तो नहीं पर इश्क़ की बेचैनियां क्यों हैं
जाने कौन सा लम्हा अब जान लेकर जाएगा
सिसक सिसक कर अब सचमें जिया नहीं जाता
आज अश्कों में डुबो दे यह रात मुझे
मेरे अश्कों की बारिश भी आज कम पड़ गई
दर्दों का शौक़ लग गया है हमको
तुम रोज दवा न बना करो हमारी अब
गर हो इश्क़ मुझसे तो नया ज़ख्म रोज देना
थोड़े दर्द से अब चढ़ती नहीं खुमारी अब
मांग भी तो हमने दर्द की ही रखी तुमसे
हमारी माँग से बाहर तुम कुछ दोगे भी क्या
मेरी आँखों से अश्कों की नमी न चुरा लेना
बड़ी मुश्किल से दर्द एक इश्क़ रूह तलक उतरा है
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