महाभाव रसराज विलास

*महाभाव रसराज विलास*

   श्रीगौर हृदय अपने भीतर सम्पूर्ण निभृत विलास समेटे हुए है। युगल वपु श्रीगौरांग के हृदय की सौरभ महाभाव रसराज की विलास से उठ रही है।इस हृदय में जहाँ क्षण क्षण नव नव मधुताएँ, नव नव श्रृंगार फूट रहा है वहीं विरह रस का उन्माद भी तरँगायित हो रहा है। कोटि कोटि महाभाव की आलोड़न गौर हृदय में सिमटी हुई है।हृदय से निर्झरित होती मधुता, केलि सुधा ऐसी गाढ़ की क्षण मात्र की स्पर्श भी जड़ कर सकती है।

    श्रीगौरांग अवतार जहाँ परम् माधुर्य रस का आस्वादन है , वहीं गम्भीरा में अति अति गाढ़ विरह रस का आस्वादन भी है।वस्तुतः विरह की कोई स्थिति नहीं , रस की अतिशय गाढ़ता ही ऐसी तृषित अवस्था का आस्वादन है जहाँ अनन्त रस को पीकर भी तृषातुर अवस्था विरहाग्नि सम ही प्रतीत होती है।रस की मधुता, गाढ़ता इतनी एकत्र है, जितनी सुरभित है उतनी ही तृषित भी।इसी मिलन विरह की तरंगों से उन्मादित, अति गाढ़ रस सुधा को भीतर समेटे हुए, पीते हुए, नाम रस रूप में तरँगायित करते हुए, नवद्वीप बिहारी गौरचन्द्र का महाभाव रसराज विलास।

    गौर भूमि *नवद्वीप* अर्थात  हृदय की नव नव दृवीभूत स्थिति।नव नव द्रवित चित्त स्थिति, जहाँ रस वर्षण भी है, रस तृषा भी। यही वर्षण नव नव तृषा उपजा रहा, यही तृषा हृदय भूमि को द्रवीभूत, रससिक्त करती है। *नवद्वीप* के नव धाम नवधा भक्ति के नव सौपान हैं। जहाँ नवधा भक्ति की पूर्णता सम्पूर्ण आत्म समर्पण पर है , वहीं नवद्वीप भूमि अपने हृदय को श्रीहरिनाम में पूर्णतः समर्पित करने की लालायित स्थिति है। नवद्वीप में गौरचन्द्र पूर्ण आत्मसर्मपण की स्थिति में दो हाथ उठाय श्रीहरिनाम आश्रय ले रहे हैं।श्रीहरिनाम से ही श्रीप्रेम प्रभु का स्पर्श सम्भव है। नवद्वीप की चहुँ दिशाएं नाम ध्वनि से विनादित हो रही हैं।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*

  इसी महामन्त्र में सम्पूर्ण निकुंज विलास की पूर्णता है, इसी में समाया हुआ है सम्पूर्ण महाभाव रसराज विलास।

श्रीगुरुगौरांगो जयते !!

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