जाने क्या
मेरी साँसे यूँ छूने को मचलती हैं रोम रोम तेरा
इश्क़ की बर्बादियों का खेल ही आता मुझको
तुम्हारी साँसों में घुलने का सुरूर है मुझ पर
इश्क़ के मयख़ाने की खुमारी न संभलती है
हैरान न होना खुद पर इश्क़ में डूबने के बाद
रूह में उतर कोई और जीने लगता है तुम्हें
फिर खुद को देखोगे तो पागल बन जाओगे
कोई जीकर क्या खेल करवाता है तुमसे
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