कुछ यूँ भी

यह ज़िन्दगी भी कम है तुम्हें पुकारने को
पुकारने का भी स्वाद कहाँ आया इस रूह को

न छुड़वाओ अब मै मयखाना अपने नाम का
तेरा नाम ही मुझे अजब नशेमान करता है

जाने क्या मय सी पी ली तुझे पुकारते हुए
तेरे नाम का नशा घुल रहा है मुझमें

थोड़ी और थोड़ी और पी लेने दो आज
जाने पीकर भी यह रूह प्यासी हो रही

क्या लिखूँ तेरा नाम लिखने के बाद
ऐसा लज़ीज़ भी तो कुछ न पाया मैंने

न छुड़वाओ अब यह मयखाना अपने नाम का
तेरा नाम ही मुझे अजब नशेमान करता है

चलो पी लेंगे सब दर्द हंसकर हम
इश्क़ के नायाब तोहफ़े भी सबके नसीब कहाँ

तुमसे न कहें तो किस से कहें हाल ए दिल हमारा
अब दूर रहकर भी तो होता नहीं है गुजारा

बिन बोले भी जानते हो न दिल की सारी
बोलकर भी क्या कहें क्या हालत बनी हमारी

लफ्ज़ों में ही दर्द पिरोना अब जिंदगी हमारी
दर्द का शौक न था अब नशा हो चुका

इक सैलाब सा है जिसमें उछल रहे हम
इश्क़ के तूफ़ान ही आशिकों का नसीब होते

दर्द मिला तो शिकवा न करेंगे अब कभी
इश्क़ नहीं अश्कों के समंदर में ही डूब सकें

देखो न बेवफा सी हो गई कलम हमारी
हमारा सँग भी तो गंवारा न गुजरा इसको

किस्से लिखते हैं हम अपनी ही बेवफ़ाई के
चाँद को छूने की औकात न है हमारी

मेरी इन आँखों से कभी नमी न जाएगी
दिल से उठती हर आवाज बस तुझे पुकार् लगाएगी

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