बिरह न साँचो
हरिहौं बिरह न साँचो लागा
भोग विषय की पुतरी बाँवरी विषयन मन रहै पागा
प्रीत की रीति न जानै बाँवरी राखै काँचो प्रेम कौ धागा
कोयल सम नाँहिं वाणी मीठी कटु बोलै ज्यों कारौ कागा
हाथ लिये सुमिरणी करै भजन क्यों मन रहै विषयन सँग भागा
कोऊ न बाता समझै प्रीति की हरि चरणन सौं करै न रागा
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