आहों की जागीर

अपनी किस्मत में अश्कों आहों की जागीर है
तुमसे मिलकर भी न मिले हम कैसी यह तकदीर है

चलो डुबो दो हमको अश्कों के ही समंदर में
आग सी लग रही भीतर कुछ सुलगती सी तासीर है
अपनी किस्मत में ......

जाने क्यों छटपटाते से रहते हैं पल पल
तोड़ नहीं सकते हम कैसे बांधी यह जंजीर है
अपनी किस्मत में .....

साँसों की सब दौलत लिख दी नाम तुम्हारे ही
बड़ी किस्मत से सच पाई हमने इश्क़ तेरे की पीर है
अपनी किस्मत में ......

कौन जाने लफ्ज़ तेरे हैं या मेरे ही
मेरे हाथों में बस अब तेरे इश्क़ की लकीर है
अपनी किस्मत में ......

अपनी किस्मत में अश्कों आहों की जागीर है
तुमसे मिलकर भी न मिले हम कैसी यह तकदीर है

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून