गौर

*गौर*

गौर नाम में श्रीयुगल का पूर्ण आह्लाद, पूर्ण उन्माद, पूर्ण रस , पूर्ण तरँग भरी हुई है। आह्लाद ऐसा की दो सागर जैसे भीतर उन्मादित हो रहे, कोटि कोटि ,महाभाव प्रकट हो रहे। इस नाम का स्पर्श ही जैसे , आहा !! रसराज और महाभाव का अभिसार , रसराज और महाभाव की अतृप्ति ही गौर होकर संयोग तथा वियोग की तरँगे प्रकट हो रही हों जैसे। इतना तीव्र विरह उन्माद , उतना ही प्रगाढ़ संयोग प्रकट। रोम रोम जैसे विरह ज्वाला से दग्ध होता , वही रोम रोम उस पीयूष सुधा निधि में डूबता जाता।

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