नाँहिं लिखुँ

नाँहिं लिखूँ आली बतियाँ जिय की
बिरहन जावै कौन द्वारे री पीर सुनावै हिय की
पिय पिय टेर रहूँ अकुलाय सूल चुभी विरह की
हाय पीर न लेवत प्राणा कौन गरज रहै देह की
अहो पीर प्रेम की पाई बलिहारी अपने पिय की
बाँवरी पीर प्रेम की नीकी न बात कहूँ अबहुँ हिय की

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