दिल की बस्ती
आज दिल की बस्ती में अरमान जला कर बैठे हैं
लब तो खामोश हैं मगर कोई तूफान दबा कर बैठे हैं
क्या तुमने निकलता देखा धुआँ मेरे अरमानों का
कबसे हम अरमानों की हम चिता बनाकर बैठे हैं
अब हमको आवाज़ न देना वापिस न जा पाएंगे
बेकार हुए इस जहां से हम तेरी चौखट आ बैठे हैं
देखा सुना न होगा तुमने शोर हमारी आहों का
रूह तक छाले हो चुके हम दर्द छिपाकर बैठे हैं
है इंतज़ार तेरा मुद्दत से जाने तुम कब आओगे
राहें तेरी चौखट पर लगाकर पलकें बिछाए बैठे हैं
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