साहिब मेरे
आज डूबो लो मुझे अपने इश्क़ के समंदर में
पीकर भी बून्द बून्द प्यास नहीं बुझती मेरी
मुझको मेरे पते से भी अब महरूम होना है
तेरा होना ही रहे बाक़ी अब जिंदगी मेरी
यह पल पल की जुदाई अब सहनी मुश्किल है
तुझे पुकारना ही हो जाए बन्दगी मेरी
है तेरे इश्क़ का एहसास अब रूह को मेरी
तुझे चाहना ही हो चुकी है आशिकी मेरी
अब रोकने से कहाँ रुकती है हसरत दिल की
तेरे कदमों के सज़दे में हुई आवारगी मेरी
मुझको चुरा लो अब मेरे वजूद से साहिब मेरे
पल पल बढ़ती जाती है तेरे इश्क़ में बेखुदी मेरी
तुम न सुनोगे तो दिल के हाल हम कहें किस से
तुम ही तो हो अब आती हर सांस की वजह मेरी
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