भोर साँझ

क्यों आये हृदय उपवन माँहिं कोमल हिय सरसाने हित
दृगन सों नीर बहे रह्यौ अबहुँ भारी होय रहयों अंतर चित
दृगन बाण सों हिय भेदयो ऐसो क्षण क्षण होय गयो अर्पित
खोजत फिरत विकल हिय सों मोहन धाय गयो अबहुँ कित
हाय बाँवरी रह्यौ अकुलावै पुनि पुनि तरसत रूप त्रिभंग ललित
झूठो साँचो नेह होय तुमसों लिखूँ भोर साँझ तेरौ कवित

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