सुलगते से

सुलगते से रहते क्यों अरमान हमारे हैं
आग लगी है इश्क़ की जलते निशान हमारे हैं

हमको तो डूबना था तेरे इश्क़ के समंदर में
मुद्दत से हम खड़े रहे अबतक बैठे किनारे हैं

सच तो यह है कि इश्क़ हमको अब तलक नहीं
उठते हैं मचलते हैं वो सब अरमान तुम्हारे हैं

हमको जो इश्क़ होता पल भी जिंदा न रहते
पल पल सिसक सिसक कर लम्हें क्यों गुज़ारे हैं

चलो तुम ही सिखा दो हमको हुनर आशिकी का
नादान हैं हम समझते नहीं कुछ देखो बेचारे हैं

हम तुमको भूला सकें न बस यह रहे सदा मुमकिन
तेरी याद से दिल जलता रहे बस इतना पुकारे हैं

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