सन्त वचन

संत वचन व्यर्थ न होवै हरि मिले आधे अक्षर माँहिं
पीवन की कोऊ लालसा मो सम कीट को उर होय नाँहि
इत उत भटकै नित मनमुख कबहुँ सन्त शरणा जाहिं
व्यर्थ गमाय रह्यौ क्षण क्षण बाँवरी कबहुँ हरिगुण गाहिं
पुनि पुनि मानस देह न पावै भटकत फिरत चौरासी माँहिं
हरि भज हरि भज लेय मूढ़े हरि नाम सों होय निभाहिं

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