फिर एक शाम

कोई चिराग न जला मेरी चौखट पर आज भी
फिर एक शाम आज उदास कर गई है मुझे

झूठी सी हंसी थी लबों पर दिल मे दर्द गहरा था
फिर एक शाम तेरी याद दिला गई है मुझे

यूँ तो दिन भर लगे रहे महफिलों में चक्कर कई
फिर एक शाम वही तन्हाई लौटा गई है मुझे

लफ्ज़ तो बहुत हैं इधर उधर की सब कहने को
फिर एक शाम दर्द में खामोश बना गई है मुझे

बारिशों में भीगने का शौक़ लगा दिल को ऐसा
फिर एक शाम अश्क छिपाना बता गई है मुझे

बाहर कुछ और हूँ अंदर से कुछ और हूँ मैं
फिर एक शाम कितने चेहरे लगा गई है मुझे

मुद्दत से तेरा इंतज़ार करते हुए हर शाम आई मेरी
फिर एक शाम तेरा इंतज़ार लौटा गई है मुझे

तेरा इंतज़ार मिला चलो जीने की वजह तो मिली
फिर एक शाम जिंदा होने की याद करा गई है मुझे

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