नाम की डोर

हरिनाम महिमा होय अपार
नाम की डोर पकर रे मनवा हिय पतंग सम्भार
नाम को साधन होय साँचो भव सों देवै तार
भुक्ति मुक्ति की आस रहे न हिय बहे प्रेम रसधार
हरिप्रेम को ही सब साधन मानुष देह को सार
जिन मानुष हरिरस न चाख्यो जीवन गयो बेकार

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