हरिदास

हरि जी कीजौ मोहे दासा
भटकत फिरत रहूँ नित नित लागी जगत पिपासा
पकरो नाथ माया न पकरे बिरथ न जावे स्वासा
बाँध लेयो मोहे आपहुँ नाथा कूप पड्यो निरासा
मेरो बल कोऊ होवै न नाथा तेरो चरणन आसा
कीजौ चाकर जन्म को मोहे हिय उठे अभिलासा

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