काहे फिरत जगत

मनवा काहे फिरत जगत बौराय
हरि हरि जप स्वासा स्वासा तबहुँ हरिरस आय
हरिनाम बिन व्यर्थ स्वासा तू काहे रह्यौ गमाय
माया का तू दास न होय हरिदास तेरौ सुभाय
डोर पकर हरिनाम बाँवरी काहे स्वास बिताय
गौरहरि अति कृपालु नाथा बिगरी बनत बनाय

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