तुम हुए

न तो हम फूल हुए कभी और न कभी हवा भी हुए
मर्ज़ ए इश्क़ समझ भी न पाए और बेवफ़ा भी हुए

मिलकर बिछड़े पल पल में ये भी जिन्दगी है कोई
जिन्दगी थी बस तेरे मिलने तक फिर जुदा भी हुए

कभी लगता है बेवजह ही बोझ है अब सांसों का भी
तुम ही फिर आने वाली हर सांस की वजह भी हुए

आँखें बंद कर ली थीं हमने तेरे सिवा न कभी देखूँ कहीं
दिल में हलचल बन तुम बैठे दिल की तम्मना भी हुए

अब ये मर्ज़ भी बढ़ता ही जा रहा है दिन ब दिन
हैरान हूँ मर्ज़ तुम हुए मगर इसकी दवा भी हुए

बस गए हो कतरे कतरे में तुम अब लहू बनकर
तुमसे ही दिल्लगी हो गई तुम्हीं खुदा भी हुए

अब हर सांस को कहदो आए तो तेरा नाम लेकर
रात बन गए हो तुम मेरी और हर सुबह भी हुए

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