कंगाला
हरिहौ हम होवैं कंगाला
नाम भजन कछु धन न होवै कीजौ दया कृपाला
द्रवित न होवै पाथर हिय मेरौ जिव्हा नाम न गावै
ताप विलाप कबहुँ न उर मेरौ दृगन नाय झरावै
सेवा लोभ न जगै उर अंतर कछु कहत सकुचावै
बाँवरी उर अंतर न कोऊ पीरा खोटो जन्म बितावै
हरिहौ हम होवैं कंगाला
नाम भजन कछु धन न होवै कीजौ दया कृपाला
द्रवित न होवै पाथर हिय मेरौ जिव्हा नाम न गावै
ताप विलाप कबहुँ न उर मेरौ दृगन नाय झरावै
सेवा लोभ न जगै उर अंतर कछु कहत सकुचावै
बाँवरी उर अंतर न कोऊ पीरा खोटो जन्म बितावै
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