ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शुद्र वर्ण भये यह चार
हरिविमुख जोई जन रहे सोई जान चमार
सोई जान चमार जाको लागे माया अति नीकी
नाम रस को स्वाद लगे तबहुँ दुनिया होय फीकी
कीजौ करुणा दासी बाँवरी नाम सों निर्धन होय
नाम रस सिंधु ते बिंदु देयो और आस न कोय
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