रे मन भजन बिना

रे मन भजन बिना सब फीको
घूमत फिरे जगत वीथिन माँहिं षडरस भावे जिय को
भजन कबहुँ न सुहावत तोहे कूकर सम विष्ठा अति भावै
लोभी रह्यौ नित मान बड़ाई भगवत रस कबहुँ न चाह्वै
बाँवरी हिय तेरो अति खोटो अबहुँ हरिनाम सम्भार
नाम भजन ही सार सकल होय दिन न रहत अबहुँ चार

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