भजन को सार
बाँवरी भजन को ही सार होय
नाम भजन सों कोस दूर रह्यौ नित मान लोभ अपार होय
कोऊ समै पकरै न सुमिरनी हाथा इत उत की झंकार होय
विष्ठा चखे कूकरी सों रैन दिवा जगत को ही विस्तार होय
बाँवरी नेक भजन कीजौ हरि को तबहुँ कोय निस्तार होय
हरिनाम यदि स्वासा सँग पीवै तबहुँ जन्म साकार होय
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