चातक बने नयना

हरिहौं कबहुँ चातक बनै नयना
निरखत रहैं टकटकी बाँधत बिन निरखै चैन परेना
कबहुँ लोभ सेवा कौ होवै कबहुँ साँची चटपटी लागै
कबहुँ चरण छांड़ हरिहौं हिय विषय भोग नाँहिं भागै
बाँवरी तू जन्मन की खोटी सौदा कीन्हीं करै घाटा
साँचो ब्यौपार नाम कौ होवै नित बढ़त सवाया ठाटा

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