कृपा कोर
हरिहौं हमरौ स्वभाव अधमाई
तुम करुणाकर कृपा मूर्ति देत सगरौ दोष बिसराई
अवगुण की खान होऊँ नाथा पर तुम अवगुण नाँहिं जानो
कृपा कोर की नित राखो अधमन कौ अपनो ही जन मानो
तुम्हरौ स्वभाव कृपा कौ नाथा बाँवरी भूली नाँहिं अधमाई
साँचो प्रेम तुम्हरौ ही जानो नाथा देत अवगुण सगरौ भुलाई
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