जानो दसा हमारी
हरिहौं जानो दसा हमारी
भोग पकावै निशि बासर बाँवरी सगरौ जन्म बिगारी
हिय उपजै न चटपटी भजन की भरयौ घोर अहंकार
कौन भाँति जीवन होय परकास भयो गहरो अंधकार
हरिहौं नाम की ज्योति देयो कबहुँ पतित जीवन प्रकासै
कबहुँ हाथ सुमिरनी रहवै कबहुँ हिय भव रोग निकासै
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