गर्व को महल

हरिहौं मेरौ गर्व कौ महल बड़ो
नित नित नव नव ईंट धराऊं नित नव कियो खड़ो
चोट पड़े सद्गुरु की ऐसो महल होय धराश गिर जावै
कबहुँ बाँवरी कृपा अवलोके कबहुँ अहंकार मद नसावै
चोट करो अहम पर नाथा कृपा कौ करौ प्रसार
दोय करि जोरि करै बाँवरी झूठी साँची मनुहार

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