जिद न करो

अपने अश्कों से सजा लेंगे महफ़िल अपनी
अपने गम उठाने की तुम ज़िद न करो

यही तो दौलत ए इश्क़ पाई है हमने
अब और आज़माने की तुम ज़िद न करो

दर्द पीने का शौक़ रखने लगे हैं अब हम
अब मेरे गम भुलाने की तुम जिद न करो

रहने दो इन अश्कों को मेरी ही आँखों में
अपने अश्कों के मोती लुटाने की जिद न करो

काश हम सीख पाते तुमसे हुनर ए इश्क़ कोई
पत्थरों को सिखाने की तुम जिद न करो

सच है काबिल ए इश्क़ हुए न हम कभी
हमें पहलू में बिठाने की तुम जिद न करो

काश सब लफ्ज़ ही खो जाएँ हमारे अब
पत्थरों को बुलाने की तुम जिद न करो

भूलना चाहते हैं अब हम वजूद अपना ही
फिर से कुछ याद दिलाने की जिद न करो

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