कौन विध होय निकासी

हरिहौं कौन विध होय निकासी
भजन हीन फिरै मूढ़ बाँवरी हिय भरै रहै उदासी
कौन भाँति हिय प्रेम उमगावै हरिहौं विषय भोग अधिकाई
प्रेम बेलि किस विध बाढ़ै नाथा आपहुँ बनो सहाई
कोऊ बल न निर्बल बाँवरी बस तुम्हरौ ही बल चाहूँ
देयो मोय रीति प्रीति की नाथा कबहुँ तुम्हरौ गुण गाऊँ

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