इश्क़ की ग़ज़ल
यूँ तो इश्क़ पर कई ग़ज़लें लिख डाली हमने
हैरान हूँ मुझे अब तलक इश्क़ तो हुआ ही नहीं
मुझको मुझसे चुरा ही लेते तुम पूरा पूरा
अपनी औकात से कभी मैंने तो छुआ ही नहीं
यूँ ही बैठे हैं खुद में खुद से उलझे से हम
जाने कितने तानों बानों को बुना है हमने
काश मुझमें मेरा वजूद न रहता बाक़ी कभी
सच तो यह है कि हाल तेरा कहाँ सुना है हमने
यह जो कसक सी उठ रही है दिल में मेरी तो नहीं
इश्क़ तो नहीं पर इश्क़ की बेचैनियां क्यों हैं
जाने कौन सा लम्हा अब जान लेकर जाएगा
सिसक सिसक कर अब सचमें जिया नहीं जाता
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