देह तपै
हरिहौं न देह तपै न हिय
षड रस भोग पदारथ लगै नीको पुनः खींचत जिय
मणि माणिक अति प्यारे लागै भोग सिंगार रहै भारी
भोगन माँहिं रहै उलझाई बाँवरी मानुस जन्म बिगारी
हा हा नाथा पकरत रह्यौ माया भजन न क्षनहुँ सुहाय
बाँवरी सदा सौं प्रेम विहीना कौन भाँति प्रेम हिय पाय
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