हिय न कोई भाव
हरिहौं हिय न कोऊ भाव
कटु वाणी पाषाण हिय बाँवरी अति कठोर स्वभाव
भजनहीनता जन्मन सौं भारी हिय न कोई चाव
सन्तन चरणन नेह न उपजै लव मात्र नाँहिं लगाव
बाँवरी कौन विधि सौं तेरी बिगड़ी होय बनत बनाव
कबहुँ पकरै मूढ़े नाम की खेनी सद्गुरु रूपी नाव
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