यूँ तो थोड़ा सा

यूँ तो थोड़ा थोड़ा सा रोज़ सुलगते हैं हम
कभी जल ही जाएँ तुम ऐसी हवा देना

बड़ी मुद्दतों से भुला बैठे थे हम तुमको
तुम्हें भुलाने की चलो कोई सजा देना

यूँ ही फ़िज़ूल कर दी साँसें क्यों हमने सारी
अब तुम हमें जीने की कोई तो वज़ह देना

खो जाएँ इस कदर हम रहे न कोई वजूद बाक़ी
ऐसी कोई मिटने की साहिब अब अदा देना

बेवफ़ाई ही भरी है देखो रग रग में मेरी
कभी इश्क़ हो तुमसे हमें थोड़ी सी वफ़ा देना

अपने ही हाल से हम बेख़बर हो चुके हैं
जो तुमको समझ हो कोई तो हमको बता देना

दर्द पीने का अब शौक लग गया है मुझको
थोड़ा दर्द और खरीद लूँ कोई ऐसा पता देना

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून