पाथर हिय
हरिहौं पाथर हिय न द्रवै
चोट परै सत्संग की निशिदिन तबहुँ जेहि भोग लहै
कबहुँ चित होय शुद्ध बाँवरी कबहुँ होय शुद्ध नाम
कबहुँ लोभ भजन कौ उपजै सकल कारज वाम
हा हा नाथा मोल न कीन्हीं बाँवरी मानुस देहि अनमोल
विषय पदार्थ नित नव चाहवै बजै अपनो नाम कौ ढोल
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