विष्ठा की ढेरी

हरिहौं हम विष्ठा की ढेरी
भजनहीन पसु फिरै बाँवरी जगति ममता बहुतेरी
पसु ह्वै तो चाम भी राखै तेरौ चाम न कीट कोऊ पाय
राख कौ ढेर बनेगी मूढ़े कबहुँ हरिभजन चित्त न लाय
कौन भाँति तेरौ होय निकासी जन्मन कौ जड़ता भारी
मद मत्सर सब कूट भरै री बाँवरी मानुस जन्म बिगारी

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