जन्म जन्म सौं सोई

जन्म जन्म सौं सोई हरिहौं कबहुँ निद्रा नसावै
कबहुँ साँचो धन की तृषा उदय होय कबहुँ हिय ललचावै
कबहुँ लोभ जगति कौ छूटे कबहुँ रसिक चरण सहरावै
कबहुँ ब्रजरज धार भाल पर श्यामाश्याम नाम ही गावै
बाँवरी भव निद्रा तेरी गाढ़ी जन्म जन्म सौं रही सोय
उठ कछु देख दसा अपनी मूढ़े फिर जन्म जन्म परी रोय

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