चटपटी साँची
हरिहौं दीजौ चटपटी साँची
विषयन लोभी पतिता बाँवरी रहै भोग व्यसन माँहिं राँची
दिन प्रतिदिन भोग बढ़ै चौगुने क्षीण होय रही काया
कियो नाँहिं मोल मानुसी देहि पाछै चौरासी कोटि पाया
तोसे भलौ कूकर जगति कौ विष्ठा चाहै नित पावै
साँचो होय हिय सौं चौखा क्षनहुँ नाँहिं खसम बिसरावै
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