भजन रीति
हरिहौं भजन रीति न जानी
सद्गुरु बातां कान सुनी न कबहुँ करै सदा मनमानी
पोषित रह्यौ अहंकार घनेरो कौन विध प्रेम उपजावै
जगति विष्ठा नीकी लागै बाँवरी कौन भाँति हिय सरसावै
सद्गुरु चरण ओट न कीन्हीं लेयो माया तोहे भरमाय
कोऊ विध बचाव न होय मूढ़ बाँवरी बिरथा स्वास गमावै
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