पुकार

पुकार

हाँ
पुकार
झूठी सच्ची सी पुकार
सुन लिए तुम
झूठ तो नहीं माने
झूठ कुछ मानते ही नहीं
दोष कोई देखते ही नहीं
देखते हो बस उत्सुकता
सुन लिए एक बार मुझसे
तुम मेरे
झूठ सच मेरे हृदय का नहीं जानते तुम
जानना मानना तो बुद्धि का विषय
तुम तो प्रेम हो बस
केवल प्रेम
मेरे झूठ को ही सच मान लिए
दौड़े ही चले आये
जैसे इधर ही देख रहे थे
मेरी ही प्रतीक्षा में थे
मानते हो न निज वस्तु
करते रहे न प्रतीक्षा
अभी से भी नहीं
जन्म जन्म से
जब से छूटी थी तुमसे
तुम्हारी ही वस्तु
आँखें बिछाकर बैठ गए
दौड़ने लगे
परन्तु रुको
एक बार रुको
मेरी दृष्टि तुम पर तो न गई
एक बार भीतर गई
अपने हृदय की कोठरी में
हाय !!
मलिनता का ढेर
वासनाओं की दुर्गन्ध
विषयों का ताप
लोभ मोह मत्सर आदि कीट
सभी प्रतिकूल तुम्हारे
रुको
रुक जाओ
जन्म जन्म की गंदगी, दुर्गन्ध , कीटों में कहाँ बिठाऊँ तुम्हें
तुम न आओ
बस मुझे सामर्थ्य दो
अपने नाम का बल
तुम्हें पुकार सकूँ
हृदय बुहार सकूँ
मुझमें कोई बल ही नहीं
न तुम्हें पुकारने का
न हृदय सँवारने का
केवल नाम रूपी मार्जनी ही दो
जिससे तुम्हारा यह घर
मन्दिर हो सके
जिसमें तुम विराज सको
प्रेम देव
मेरे लाडलीलाल

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