अपराधन की खान
हरिहौं अपराधन की खान भयो
कोटि कोटि जन्म किये अपराध बाँवरी नादान रहयो
एकै नाम ते कटे अपराधा बाँवरी पर साँचो न नाम लयो
रसिक भक्तन की कृपा अहैतुकी पर मूढ़े न कान दयो
हा हा नाथा अबहुँ बिलपत कौन सौं मुख ते बात कहयो
बाँवरी साँचे हरिभजन बिना मानुस देहि तेरी व्यर्थ गयो
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