जगति दौरे

हरिहौं हम अहंकारी न थोरे
भर भर रहे अहम नित उर अंतर ऐसो जगति दौरे
एकै राह दृढ़ होय न चालै बाँवरी राह नई नित होरे
अबहुँ बिलपत मूढ़े करमन कु काहे रोय रोय माथो फोरे
नाम की निधि न राखी कोऊ विध बिसराई साँझ और भोरे
अबहुँ सुनो पीर पतितन की नाथा पुनि पुनि करत निहोरे

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