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Showing posts from October, 2018

जन्म जन्म सौं सोई

जन्म जन्म सौं सोई हरिहौं कबहुँ निद्रा नसावै कबहुँ साँचो धन की तृषा उदय होय कबहुँ हिय ललचावै कबहुँ लोभ जगति कौ छूटे कबहुँ रसिक चरण सहरावै कबहुँ ब्रजरज धार भाल पर श्यामाश्य...

प्रेम भक्ति के स्वाद को

प्रेम भक्ति के स्वाद कौ बिरला पावै कोय रसिक आश्रय कृपा बनै सुखी  होय रहै दोय नित्य निरतंर नाम वाणी देवै साँचो स्वाद हिय युगल रस भीजत रहै होय परम उन्माद कृपा बनै श्रीयुगल की ...

कहाँ छिपूं

*कहाँ छिपूं*     हे नाथ ! हे करुणामयी ! जन्म जन्म से अन्धकार में पड़ा, माया के आवर्त में उलझा हुआ, जड़ता से बाधित , त्रिताप से तप्त, वासनाओं में लिप्त , भटका हुआ जीव हूँ नाथ। न मैंने अपन...

पुकार

पुकार हाँ पुकार झूठी सच्ची सी पुकार सुन लिए तुम झूठ तो नहीं माने झूठ कुछ मानते ही नहीं दोष कोई देखते ही नहीं देखते हो बस उत्सुकता सुन लिए एक बार मुझसे तुम मेरे झूठ सच मेरे हृद...

भक्ति पथ कौ मूल

भक्ति पथ कौ मूल है श्रद्धा और विश्वास बिन श्रद्धा जेई मार्ग चलिवै की छांड देयो आस पकरि डोर श्रद्धा की विश्वास कौ कीजौ साधन बात जोय की बनी ह्वै हिय सौं तिनको करौ आराधन पकरि प...

हिय लगाऊँ

हरिहौं कौन विधि हिय लाऊँ हरिभजन सौं नेह न साँचो कौन विध नेहा लगाऊँ लागै षडरस जगति कौ नीकै पुनि पुनि दौड़त जाऊँ जाने न पतिता बाँवरी कोऊ विधि धन हिय साँचो पाऊँ तुम्हरी ठौर नाथा...

अहंकारी न थोरे

हरिहौं हम अहंकारी न थोरे भर भर रहे अहम नित उर अंतर ऐसो जगति दौरे एकै राह दृढ़ होय न चालै बाँवरी राह नई नित होरे अबहुँ बिलपत मूढ़े करमन कु काहे रोय रोय माथो फोरे नाम की निधि न राखी ...

हिय न कोई भाव

हरिहौं हिय न कोऊ भाव कटु वाणी पाषाण हिय बाँवरी अति कठोर स्वभाव भजनहीनता जन्मन सौं भारी हिय न कोई चाव सन्तन चरणन नेह न उपजै लव मात्र नाँहिं लगाव बाँवरी कौन विधि सौं तेरी बिग...

कौन विध होय निकासी

हरिहौं कौन विध होय निकासी भजन हीन फिरै मूढ़ बाँवरी हिय भरै रहै उदासी कौन भाँति हिय प्रेम उमगावै हरिहौं विषय भोग अधिकाई प्रेम बेलि किस विध बाढ़ै नाथा आपहुँ बनो सहाई कोऊ बल न नि...

साँची न चटपटी

हरिहौं साँची न चटपटी लागै कबहुँ पावै बाँवरी स्वाद नाम कौ दूर जगति सौं भागै आपहुँ कृपा कर देयो स्वाद नाम कौ और न चाहूँ नाथा मुख राखूँ धन हरिनाम कौ और सुमिरनी पकरूँ हाथा रसना ...

श्रीहरिदास

श्रीहरिदास रट री रसना या में सुख अपार श्रीहरिदास नाम ही सकल भक्ति कौ होय सार हरिदास भजै हरि आप मिले रट रे मन हरिदास भये प्रसन्न लाल लाडिली राखै चरण कमल पास बाँवरी भज हरिदास ...

इश्क़ की ग़ज़ल

यूँ तो इश्क़ पर कई ग़ज़लें  लिख डाली हमने हैरान हूँ मुझे अब तलक इश्क़ तो हुआ ही नहीं मुझको मुझसे चुरा ही लेते तुम पूरा पूरा अपनी औकात से कभी मैंने तो छुआ ही नहीं यूँ ही बैठे हैं खुद ...

पाथर हिय

हरिहौं पाथर हिय न द्रवै चोट परै सत्संग की निशिदिन तबहुँ जेहि भोग लहै कबहुँ चित होय शुद्ध बाँवरी कबहुँ होय शुद्ध नाम कबहुँ लोभ भजन कौ उपजै सकल कारज वाम हा हा नाथा मोल न कीन्ह...

अहंकार भरयौ

हरिहौं अहंकार भरयौ भारी भर भर नित भीतर बाँवरी सगरौ जन्म बिगारी सन्त चरणन निष्ठा न उपजै ललसावै भोग प्रतिष्ठा कीट रह्यौ भोगन कौ भारी नित पावत रहवै विष्ठा बाँवरी पतित जन्म ज...

हमरौ स्वभाव अधमाई

हरिहौं हमरौ स्वभाव अधमाई तुम करुणाकर कृपा मूर्ति देत सगरौ दोष बिसराई अवगुण की खान होऊँ नाथा पर तुम अवगुण नाँहिं जानो कृपा कोर की नित राखो अधमन कौ अपनो ही जन मानो तुम्हरौ स्...

गर्व को महल

हरिहौं मेरौ गर्व कौ महल बड़ो नित नित नव नव ईंट धराऊं नित नव कियो खड़ो चोट पड़े सद्गुरु की ऐसो महल होय धराश गिर जावै कबहुँ बाँवरी कृपा अवलोके कबहुँ अहंकार मद नसावै चोट करो अहम पर ...

कृपा कोर

हरिहौं हमरौ स्वभाव अधमाई तुम करुणाकर कृपा मूर्ति देत सगरौ दोष बिसराई अवगुण की खान होऊँ नाथा पर तुम अवगुण नाँहिं जानो कृपा कोर की नित राखो अधमन कौ अपनो ही जन मानो तुम्हरौ स्...

काहे दीन्ही बाँवरी स्वासा

हरिहौं काहे दीन्हीं बाँवरी स्वासा एहि स्वासा देयो भक्तन कु जो बोले प्रेम कौ भासा मूढ़ा पतित बाँवरी हरिहौं रहै जन्मन कौ निर्धन झूठो धन नित संचय कीन्हीं मूढ़े भूल्यो साँचो ध...

भोग अवतार

हरिहौं भोग कौ भयो अवतार भोग चितवै भोग उपजै बाँवरी भोग कौ कारोबार नाम भजन की बात न कीन्हीं बाँवरी भोगन रहै पसार कौन भाँति भव होय छुटकारा न लहै नाम कौ सार पतित बाँवरी जन्म जन्...

जानो दसा हमारी

हरिहौं जानो दसा हमारी भोग पकावै निशि बासर बाँवरी सगरौ जन्म बिगारी हिय उपजै न चटपटी भजन की भरयौ घोर अहंकार कौन भाँति जीवन होय परकास भयो गहरो अंधकार हरिहौं नाम की ज्योति देय...

प्रेम

प्रेम प्रेम करना तो तुम ही जानते हो हाँ सच है तुम्हें प्रेम के सिवा कुछ आता भी तो नहीं सुहाता भी तो नहीं दिखता भी तो नहीं कोई दोष कोई अभाव कोई पात्रता सच कुछ भी तो न देखते हो तुम ...

जगति दौरे

हरिहौं हम अहंकारी न थोरे भर भर रहे अहम नित उर अंतर ऐसो जगति दौरे एकै राह दृढ़ होय न चालै बाँवरी राह नई नित होरे अबहुँ बिलपत मूढ़े करमन कु काहे रोय रोय माथो फोरे नाम की निधि न राखी ...

अपराधन की खान

हरिहौं अपराधन की खान भयो कोटि कोटि जन्म किये अपराध बाँवरी नादान रहयो एकै नाम ते कटे अपराधा बाँवरी पर साँचो न नाम लयो रसिक भक्तन की कृपा अहैतुकी पर मूढ़े न कान दयो हा हा नाथा अ...

पतितपावन

हरिहौं कौन कहै पतितपावन जौ पतितन कौ पावन न कीन्हें कैसो नाम सुहावन तुम भक्तवत्सल मैं भक्त न हरिहौं तुम अधमन तारन तुम दाता दीनानाथ प्रभु हमहुँ जन्म जन्म भिखारन पाथर हिय कब...

विष्ठा की ढेरी

हरिहौं हम विष्ठा की ढेरी भजनहीन पसु फिरै बाँवरी जगति ममता बहुतेरी पसु ह्वै तो चाम भी राखै तेरौ चाम न कीट कोऊ पाय राख कौ ढेर बनेगी मूढ़े कबहुँ हरिभजन चित्त न लाय कौन भाँति तेर...

रसिक सँग

*रसिक कृपा*    श्रीप्रभु कृपा से जीवन में श्रीरसिक का आना होता है तो उनका क्षण मात्र का सँग ही कल्याण का सिन्धु होता है, जिनमें उनकी करुणा हिलोरे लेती हुई जीव को कृपानवित कर द...

भजन रीति

हरिहौं भजन रीति न जानी सद्गुरु बातां कान सुनी न कबहुँ करै सदा मनमानी पोषित रह्यौ अहंकार घनेरो कौन विध प्रेम उपजावै जगति विष्ठा नीकी लागै बाँवरी कौन भाँति हिय सरसावै सद्ग...

नाम रस

हरिहौं कबहुँ नाम रस पाऊँ छांड़ भोग विष्ठता जगति कौ साँचो तुमसौं नेह लगाऊँ झूठो हिय झूठ ही उपजै झूठ कौ होय सकल पसार मोसौं पापी कीट कौ नाथा कौन भाँति होय उद्धार कौन भाँति हिय उ...

नाम कौ गान

हरिहौं देयो नाम कौ गान तुमसौं कृपामय करूँ न बर्णन अपनो अवगुण करौं बखान अवगुण मोरे कोटिन नाथा तुम्हरे गुण न गिनत बनै एकै जिव्हा राखी मुख सौं कोटिन जिव्हा सौं न कहत बनै करो कृ...

भजन रीति

हरिहौं भजन रीति न जानी सद्गुरु बातां कान सुनी न कबहुँ करै सदा मनमानी पोषित रह्यौ अहंकार घनेरो कौन विध प्रेम उपजावै जगति विष्ठा नीकी लागै बाँवरी कौन भाँति हिय सरसावै सद्ग...

हरिहौं और न दीजौ स्वासा

हरिहौं और न दीजौ स्वासा जन्मन कौ रोग होय रह्यौ भारी कठिन होय निकासा कोऊ जन्म नाँहिं हरि चेताया होय रही जड़ता भारी गुरु चरणन नाँहिं दियो हिय साँचो स्वासा स्वास बिसारी मनमान...

चटपटी साँची

हरिहौं दीजौ चटपटी साँची विषयन लोभी पतिता बाँवरी रहै भोग व्यसन माँहिं राँची दिन प्रतिदिन भोग बढ़ै चौगुने  क्षीण होय रही काया कियो नाँहिं मोल मानुसी देहि  पाछै चौरासी कोटि ...

देह तपै

हरिहौं न देह तपै न हिय षड रस भोग पदारथ लगै नीको पुनः खींचत जिय मणि माणिक अति प्यारे लागै भोग सिंगार रहै भारी भोगन माँहिं रहै उलझाई बाँवरी मानुस जन्म बिगारी हा हा नाथा पकरत र...

जिद न करो

अपने अश्कों से सजा लेंगे महफ़िल अपनी अपने गम उठाने की तुम ज़िद न करो यही तो दौलत ए इश्क़ पाई है हमने अब और आज़माने की तुम ज़िद न करो दर्द पीने का शौक़ रखने लगे हैं अब हम अब मेरे गम भुला...

चातक बने नयना

हरिहौं कबहुँ चातक बनै नयना निरखत रहैं टकटकी बाँधत बिन निरखै चैन परेना कबहुँ लोभ सेवा कौ होवै कबहुँ साँची चटपटी लागै कबहुँ चरण छांड़ हरिहौं हिय विषय भोग नाँहिं भागै बाँवरी ...

जगति भाय

हरिहौं भोग जगति हिय भाय विषय वासना कौ जड़ गहरी हरिनाम न कबहुँ सुहाय हरिनाम न कबहुँ सुहाय बाँवरी नित नव ढोंग बनाय बाहर भीतर अन्तर कीन्हीं किस विध प्रेम रस पाय जो होतो हिय चातक...

कौन भाँति छूटे रोग

हरिहौं कौन भाँति भोग छूटै जड़बुद्धि अति पामर जीवा किस विध प्रेम धन लूटै हमरो कोऊ बल न नाथा अति मोटी भोगन जंजीर बाँवरी बिलपत रहै बंधत ही सरसावै हिय जब पीर काटो नाथा क्लेश सब ह...

प्रेम कौ पन्थ

हरिहौं हम प्रेम कौ पन्थ न जाने बुद्धि खोटी जन्म जन्म सौं किये सदा मनमाने भोग पदार्थ लागै नीकै बाँवरी नित नित संचय कीन्हें हरि चरणन सौं प्रेम न उपजै हिय भोग बढ़ै रसभीने विषय भ...

जगति लोभ

हरिहौं जगति लोभ न जावै कौन भाँति हिय चरणन अटकै नित स्वाद भोग कौ पावै विषय भोग माँहिं ममता गाढ़ी दिन दिन बढ़त रहै सवाया चार चौगुना लालसा बाढ़ै बाँवरी कबहुँ नाम कौ रस न पाया हा हा ...

यूँ तो थोड़ा सा

यूँ तो थोड़ा थोड़ा सा रोज़ सुलगते हैं हम कभी जल ही जाएँ तुम ऐसी हवा देना बड़ी मुद्दतों से भुला बैठे थे हम तुमको तुम्हें भुलाने की चलो कोई सजा देना यूँ ही फ़िज़ूल कर दी साँसें क्यों ह...