कौन देस के वासी
नाथ तुम कौन देस के वासी
प्राण न राखूं तुम बिन नाथा जग सौं फिरूँ निरासी
किस विध प्राण राखे बिरहन उर अंतर छाय उदासी
हा हा करत प्राण भ्यै व्याकुल काहे बिसारी दासी
तुम चरणन पंकज धन मोरा दीजौ नाथ ख़्वासी
अरज सुनो नेक अबला की कीजौ न अबहुँ हासी
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