धन धन कलि

धन्य धन्य कलियुग अति धन्य सहज प्रेम रस सार
प्रकटे गौर निताई दोऊ परम करुणावतार

करुणा कीन्हीं गौर निताई सब पतित अधम अपनाय
हरि हरि नाम लेत सहज ही पतित प्रेम धन पाय

कलियुग सार नाम हरि कौ कठिन जप तप व्रत नेम
हरि हरि कौ नाम भजत ही पतितन पावै प्रेम

जय गौरा गौरा गौरहरि निताई   बांटे परम प्रेम कौ धन
नाम हरि कौ भज री बाँवरी जन्मन सौं निर्धन

गुरुकृपा सौं साँचो धन पाई गौर निताई नाम
गौरा गौर भज री मूढ़े मिले गौर चरण बिसराम

नाम हरि कौ धन साँचो सुमिर लेय स्वासा स्वास
मूढ़ा पतित बाँवरी जगति फिरै तज हरिचरण कौ आस

बिरथा कीन्हीं जन्म बथेरे अबहुँ जोरि हरिनाम कौ धन
नाम की पूँजी सम्भार बाँवरी बिन नाम रहै निर्धन

प्रेम लुटाय गौर निताई होय गुरु कृपा अति भारी
काहे गमाय बिरथा स्वासा होय जन्मन जन्म ख़्वारी

Comments

Popular posts from this blog

भोरी सखी भाव रस

घुंघरू 2

यूँ तो सुकून