प्रीति की रीति

नाथ तुम प्रीत की रीत न तोरो
कौन भरोसो छांड निज दासी जाय रहत हो छोरो
जावन की न कहियो नाथा देह प्राण नहिं राखै
कछु न सुहावै बिरहन को बिरहा पीर बस चाखै
हा हा पीर लगै मोय नीकी प्रीतम ने मोय दीन्हीं
हिय छुपाय रखूँ छब पिय की जग सौं पर्दा कीन्हीं

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