प्रेम वितरण की रीति

प्रेम वितरण की रीति सहज कलियुग अति धन्य
प्रेमरसावतार लेय प्रकटे श्रीनिताई चैतन्य

प्रेम धन भरि भरि लुटाय कोई भेद न राखै
एकै बार हरि हरि बोल हरि प्रेम रस चाखै

जय शचिनन्दन जय पद्मावती सुत परम प्रेमावतार
नाम हरि को भजत ही कलि सौं होय उद्धार

भज निताई भज गौर भाई भजत भजत सुख होय
हरि हरि नाम लेय मुख सौं हाथ उठाय दोय

काल नेम कौ बन्ध न कोई सहज सार हरिनाम
भज भज प्यारे नाम हरि को यही प्रेम कौ दाम

हाट लगाई गौर निताई हरि नाम जो गावै
दाम देय साँचो नाम हरि कौ परम प्रेम धन पावै

कलिपावन अवतार निताई श्रीकृष्ण चैतन्य
अधम पतित जीव पाय प्रेम होय धन्य

भजे बाँवरी नाम एकै गौरा गौर निताई
गुरुकृपा सौं नाम की भिक्षा बाँवरी दासी पाई

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